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थलापति विजय ने बनाई पॉलिटिकल पार्टी: राजनीति में सितारों की एंट्री MGR ने शुरू की, अमिताभ-गोविंदा ने कुछ सालों में ही की पॉलिटिक्स से तौबा

थलापति विजय ने बनाई पॉलिटिकल पार्टी:  राजनीति में सितारों की एंट्री MGR ने शुरू की, अमिताभ-गोविंदा ने कुछ सालों में ही की पॉलिटिक्स से तौबा


1 घंटे पहले

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तमिल सुपरस्टार थलापति विजय राजनीति में उतरने वाले हैं। इन दिनों वह अपनी राजनीतिक पार्टी तमिझगा वेत्री कड़गम को लेकर चर्चा में हैं। कयास ये भी हैं कि विजय 2026 में विधानसभा चुनाव भी लड़ेंगे। राजनीति में उतरने के बावजूद वो फिल्में नहीं छोड़ेंगे और अपने फैंस को एंटरटेन करते रहेंगे।

वैसे, विजय से पहले साउथ और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कई सितारों ने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई है। ये ट्रेंड साउथ सुपरस्टार MGR ने शुरू किया था। उनके बाद NTR, जयललिता, विजयकांत, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, सुनील दत्त आदि कई सितारे पॉलिटिक्स में आए। इनमें से कुछ सक्सेसफुल हुए तो कुछ अनसक्सेसफुल साबित हुए।

आज नजर डालते हैं दिग्गज सितारों पर जिन्होंने राजनीति में अपना लक आजमाया…

MGR ने शुरू किया ट्रेंड

MGR यानी एम.जी. रामचंद्रन पहले ऐसे स्टार थे जिन्होंने राजनीति में सितारों के आने का ट्रेंड शुरू किया। वो तमिल फिल्मों के सुपरस्टार रहे और तमिलनाड़ु के मुख्यमंत्री भी। MGR जब हीरो थे तो उनकी फिल्में रिकॉर्ड तोड़ कमाई करती थीं। राजनीति में आए तो मुख्यमंत्री बने।

MGR को राजनीति में अपनी फैन फॉलोइंग का जबरदस्त फायदा मिला था।

MGR को राजनीति में अपनी फैन फॉलोइंग का जबरदस्त फायदा मिला था।

MGR 1953 में कांग्रेस का हिस्सा बने। MGR की जबरदस्त फैन फॉलोइंग के चलते हर पॉलिटिकल पार्टी उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करना चाहती थी। फिल्म राइटर से पॉलिटिशियन बने सी.एन.अन्नादुरई ने MGR को अपनी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) में शामिल होने के लिए मना लिया।

1962 में MGR पहली बार विधायक बने। MGR की पार्टी ने 1977 में 234 में से 130 सीटें हासिल कीं और MGR तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। 24 दिसंबर 1987 को MGR की मौत हो गई थी।

NTR की पॉपुलैरिटी के आगे नहीं टिकी थी कांग्रेस

300 से ज्यादा साउथ फिल्मों में काम कर चुके NTR ने भी राजनीति में लंबी पारी खेली थी। वे इतने पॉपुलर थे कि लोग इन्हें देवता मानते थे। इसका फायदा इन्हें राजनीतिक करियर में भी मिला। NTR ने 1982 में तेलुगु देशम पार्टी बनाई और पॉलिटिक्स में एंट्री ली। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।

दरअसल, 80 के दशक में एक प्रोग्राम में शामिल होने के लिए रामा राव नेलोर पहुंचे थे और वहां सरकारी गेस्ट हाउस गए। गेस्ट हाउस में सिर्फ एक ही कमरा खाली था, जो वहां के एक मंत्री के लिए बुक हो चुका था। रामा राव ने गेस्टहाउस के स्टाफ से जिद करके कमरा अपने लिए खुलवा लिया, लेकिन इसी बीच मंत्री महोदय आ पहुंचे और रामा राव को अपमानित होकर कमरा छोड़ना पड़ा था।

रामा राव ने ये आपबीती अपने मित्र नागी रेड्डी को सुनाई। फिर नागी रेड्डी ने कहा कि ‘भले ही तुम कितनी भी दौलत और शोहरत हासिल कर लो, लेकिन असली पावर तो नेताओं के पास ही होती है।’ ये बात सुनने के बाद रामा राव ने फैसला कर लिया कि वह अपनी राजनीतिक पार्टी बनाएंगे।

NTR आंध्र प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री बने। 1983 से 1994 के बीच यह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।

NTR आंध्र प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री बने। 1983 से 1994 के बीच यह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।

NTR ने 1982 में तेलुगु देशम पार्टी की स्थापना की। फेमस एक्टर होने के चलते NTR और इनकी पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली। इसी के साथ NTR आंध्र प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री बने। 1983 से 1994 के बीच यह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, NTR पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने रैलियों का प्रचलन शुरू किया था। उन्होंने नौ महीनों में 40 हजार किलोमीटर की यात्रा कर रिकॉर्ड बनाया था। इस वजह से उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ।

NTR का पॉलिटिक्स से जुड़ा एक और किस्सा ये है कि जब 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो उसके बाद देश में आम चुनाव हुए। इसमें कांग्रेस और इंदिरा के बेटे राजीव गांधी के प्रति सहानुभूति की लहर पूरे देश में चली, लेकिन आंध्रप्रदेश इससे अछूता रहा। दरअसल, NTR की पॉपुलैरिटी के आगे कांग्रेस आंध्र प्रदेश में नहीं टिक सकी और तेलुगु देशम पार्टी को वहां तगड़ी सफलता मिली।

1995 तक NTR सत्ता के शिखर पर थे, लेकिन आठ दिनों में ही वो मुख्यमंत्री से पूर्व मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद उनके हाथ से सत्ता फिसल गई। दामाद चंद्रबाबू नायडू ने NTR की सीएम की कुर्सी से लेकर तेलुगु देशम पार्टी तक पर कब्जा कर लिया। NTR को सत्ता जाने का गम इस कदर हुआ कि उनकी तबीयत अक्सर खराब रहने लगी। सत्ता से हटने के चार महीने बाद 18 जनवरी, 1996 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया।

जयललिता बनी थीं तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री

जे. जयललिता राजनीति में उतरे सबसे कामयाब सितारों में से एक हैं। कहा जाता है कि 1977 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन जयललिता को राजनीति में लेकर आए थे।1982 में उन्होंने MGR की पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) जॉइन कर ली। 1983 में उन्हें प्रचार समिति का सचिव बनाया गया और यही वह साल था जब वे पहली बार तिरुचेंदूर विधानसभा सीट से विधायक चुनी गईं।

जयललिता की धाराप्रवाह अंग्रेजी के कारण MGR चाहते थे कि वे राज्यसभा में आएं और 1984 से 1989 में वे बतौर राज्यसभा सदस्य संसद में अपनी जगह बनाए रहीं। 1989 में जयललिता ने तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभाली और 24 जून 1991 को वे पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री के पद पर बैठीं। वो तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। वो 6 बार मुख्यमंत्री बनीं।

इस दौरान MGR से जयललिता के अफेयर ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। खास बात यह है कि उस वक्त MGR पहले से शादीशुदा और दो बच्चों के पिता थे।

जब MGR का निधन हुआ तो जयललिता उनके शव के पास 21 घंटे तक खड़ी रही थीं।

जब MGR का निधन हुआ तो जयललिता उनके शव के पास 21 घंटे तक खड़ी रही थीं।

चिरंजीवी बने थे टूरिज्म मिनिस्टर

फिल्मों के अलावा चिरंजीवी ने राजनीति में भी हाथ आजमाया था। उन्होंने 2008 में आंध्रप्रदेश में एक राजनीतिक दल प्रजा राज्यम पार्टी की शुरुआत की थी। पार्टी लॉन्च के समय उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय उनकी पार्टी का मुख्य एजेंडा है। 2009 के आम चुनाव में पार्टी ने आंध्रप्रदेश विधानसभा की 294 सीटों में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी।

6 फरवरी 2011 को चिरंजीवी की प्रजा राज्यम पार्टी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया। इस विलय के बाद 28 अक्टूबर 2012 को उन्होंने राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली। उन्हें टूरिज्म मिनिस्टर बनाया गया था।

जयललिता और करुणानिधि के प्रतिद्वंद्वी कहलाए विजयकांत

विजयकांत तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थे। 2005 में उन्होंने अपनी पार्टी MDK यानी देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम बना ली। उन्हें जयललिता और करुणानिधि का प्रतिद्वंद्वी कहा जाता था। 2006 में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने सिर्फ एक सीट जीती, लेकिन वोट परसेंट में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करवाई।

उनकी पार्टी को 8.38% वोट मिले। 2011 के चुनावों में उन्होंने करुणानिधि की पार्टी DMK को हराने के उद्देश्य से जयललिता की पार्टी AIADMK के साथ गठबंधन कर लिया। उनकी पार्टी ने कुल 41 सीटों में से 29 पर जीत हासिल की। विजयकांत सदन में विपक्ष के नेता बने। ये उपलब्धि पाने वाले वो पहले एक्टर थे।

रजनीकांत ने 26 दिन में छोड़ दी राजनीति

साउथ सुपरस्टार रजनीकांत ने भी 2017 में पॉलिटिक्स जॉइन की थी। उन्होंने रजनी मक्कल मंद्रम (RMM) नाम की पार्टी बनाई थी, लेकिन उनका राजनीतिक सफर 26 दिन में ही खत्म हो गया। 2021 में इन्होंने पार्टी भंग कर दी और कह दिया कि आगे वो पॉलिटिक्स में नहीं लौटना चाहेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रजनीकांत ने खराब सेहत के चलते ये फैसला लिया था।

कमल हासन ने 2018 में मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई थी। उनके अलावा साउथ स्टार पवन कल्याण, सुरेश गोपी भी राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं।

1987 में अमिताभ ने पॉलिटिक्स से की तौबा

साउथ के अलावा कई बॉलीवुड सितारों ने भी राजनीति में कदम रखा था, लेकिन टिक नहीं पाए और जल्द ही राजनीति से दूर हो गए। इसमें बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन पहले नंबर पर हैं।

उन्होंने 1984 के आम चुनावों में राजीव गांधी के कहने पर इलाहाबाद से हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ चुनाव लड़ा था और इसमें जीत भी गए थे। अमिताभ के लिए इलाहाबाद से चुनाव जीतना चुनौती भरा था क्योंकि उनके विरोधी हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे।

उनकी शहर पर पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि कई पार्टी बदलने के बावजूद भी वे कभी चुनाव हारे नहीं थे, लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए तो सभी हैरान रह गए। बहुगुणा को भारी मतों से पछाड़ते हुए अमिताभ ने चुनाव जीत लिया।

अमिताभ अभिनेता के साथ-साथ नेता भी बन गए थे। नई दिल्ली के मोतीलाल मार्ग पर 2F वाला बंगला उन्हें रहने को भी मिला। यह वही बंगला था जहां प्रधानमंत्री बनने के पहले राजीव गांधी का दफ्तर हुआ करता था। एमपी बनने के बाद फिल्मों का काम देखने अमिताभ बच्चन का स्टाफ मुंबई से दिल्ली आया। वहीं, राजनीतिक कामों के लिए अमिताभ ने नया स्टाफ रखा था।

फिल्मों का काम और राजनीति अमिताभ साथ-साथ कर रहे थे। इसी दौर में अमिताभ बच्चन की कई फिल्में भी रिलीज हुईं जिसमें मर्द ने अच्छा बिजनेस किया। फिल्मों में व्यस्त रहने के कारण अमिताभ राजनीति से दूर होते जा रहे थे, जिसका फायदा उनके राजनीतिक विरोधियों ने जमकर उठाया। बोफोर्स, फेयरफैक्स और पनडुब्बी घोटाले में अमिताभ का नाम घसीटा जाने लगा। यह दबाव अमिताभ नहीं झेल पाए और उन्होंने 1987 में राजनीति से संन्यास ले लिया।

अमिताभ ने भले ही राजनीति से दूरी बना ली, लेकिन उनकी पत्नी जया बच्चन साल 2004 से लगातार राज्यसभा सांसद बनी हुई हैं और समाजवादी पार्टी की नेता हैं।

राजनीति की वजह से राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा के रिश्ते बिगड़े

बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना भी राजनीति में उतरे थे। हालांकि उनका सफर भी ज्यादा लंबा नहीं रहा था। राजेश खन्ना ने 1991 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। वो चुनाव हार गए थे, लेकिन आडवाणी को उन्होंने तगड़ी टक्कर दी थी। आडवाणी बेहद कम मार्जिन से चुनाव जीतने में सफल हुए थे। आडवाणी को 93,662 वोट मिले थे, जबकि राजेश खन्ना को 92,073 वोट मिले थे।

इसके बाद 1992 में लालकृष्ण आडवाणी ने दिल्ली सीट से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद इस सीट पर फिर उपचुनाव हुए। कांग्रेस ने इस चुनाव में फिर राजेश खन्ना को कैंडिडेट बनाया। वहीं, बीजेपी ने शत्रुघ्न सिन्हा को राजेश खन्ना के खिलाफ मैदान में उतारा। इस बार काका ने शत्रुघ्न सिन्हा को हरा दिया और 1992-96 तक लोकसभा सदस्य रहे। शत्रुघ्न को अपने खिलाफ चुनाव लड़ता देख काका बेहद आहत हुए थे और उन्होंने शॉटगन से बातचीत बंद कर दी थी।

शत्रुघ्न ने इस बारे में एक इंटरव्यू में कहा था, ‘जब मैं राजेश जी के खिलाफ चुनाव में खड़ा हुआ तो उन्हें इस बात का काफी बुरा लगा। ईमानदारी से बताऊं तो मैं भी ऐसा करना नहीं चाहता था, लेकिन मैं आडवाणी जी को इनकार नहीं कर पाया। मैंने यह बात राजेश खन्ना को भी समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरी एक ना सुनी और कई सालों तक हमने एक-दूसरे से बात नहीं की। जब राजेश जी अपने अंतिम दिनों में अस्पताल में भर्ती थे तो मैं उनके पास जाकर उन्हें गले लगाकर माफी मांगना चाहता था, लेकिन दुर्भाग्यवश वे इससे पहले ही दुनिया से चल बसे।

विवादों से भरा रहा गोविंदा का राजनीतिक सफर

गोविंदा ने साल 2004 में राजनीति में एंट्री ली थी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर ना सिर्फ मुंबई की लोकसभा सीट के लिए चुनाव लड़ा बल्कि जीत भी हासिल की। राजनीति के दौरान गोविंदा कभी ऐज सर्टिफिकेट के कारण तो कभी गलत फैसलों को समर्थन करने के चलते विवादों में रहे। धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी खत्म होती गई और उन्होंने साल 2008 में हमेशा के लिए राजनीति को अलविदा कह दिया।

धर्मेंद्र ने चार साल में छोड़ी राजनीति, बेटे सनी ने लड़ा चुनाव

धर्मेंद्र ने वर्ष 2004 में राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से BJP के टिकट पर चुनाव लड़ा था और तब उन्होंने एकतरफा जीत हासिल की थी। हालांकि उसके बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। धर्मेंद्र ने 2008 में इस्तीफा देकर एक्टिंग की राह पर चलने का फैसला किया और राजनीति छोड़ दी।

धर्मेंद्र के बाद 2019 में देओल फैमिली से उनके बेटे सनी देओल ने भी BJP के ही टिकट पर पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के सुनील जाखड़ को हराया। सनी 2024 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि राजनीति उनके परिवार को सूट नहीं करती है। वो गदर की सक्सेस के बाद केवल अपने फिल्मी करियर पर ही फोकस करना चाहते हैं।

उर्मिला मातोंडकर ने 6 महीने में ही बदल ली पार्टी

रंगीला जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में नजर आ चुकीं उर्मिला मातोंडकर ने साल 2019 में राजनीति में कदम रखा था। एक्ट्रेस ने कांग्रेस की तरफ से लोकसभा चुनाव लड़ा था। उनके सामने भाजपा के गोपाल शेट्टी थे जिसके चलते एक्ट्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। कुछ महीनों बाद ही उर्मिला कांग्रेस से इस्तीफा देकर शिवसेना में शामिल हो गईं।

अटल बिहारी वाजपेयी ने विनोद खन्ना को बनाया था विदेश राज्य मंत्री

विनोद खन्ना ने बॉलीवुड के अलावा पॉलिटिक्स में भी सफल पारी खेली। 1997 में बीजेपी से जुड़ने के बाद वे गुरदासपुर, पंजाब से सांसद रहे। जुलाई 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें संस्कृति और पर्यटन मंत्री बनाया। 2003 में वाजपेयी ने उन्हें विदेश राज्य मंत्री का अहम जिम्मा सौंपा।

इस पद पर रहते हुए खन्ना ने फिल्म इंडस्ट्री के जरिए भारत-पाक के बीच दूरियां कम करने की कोशिश कीं। 2017 में विनोद खन्ना का निधन हो गया था जिसके बाद अब 2024 में उनकी पत्नी कविता खन्ना को गुरदासपुर से बीजेपी ने टिकट देने की पेशकश की है।

राज बब्बर रहे तीन बार लोकसभा सांसद

राज बब्बर यूपी के एक नामी राजनेता हैं। एक्टर यूपी के कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद हैं। एक्टर दो बार राज्यसभा सांसद और तीन बार लोकसभा सांसद रहे हैं।

जया प्रदा फिल्मों से ज्यादा राजनीति में एक्टिव

बॉलीवुड एक्ट्रेस जया प्रदा ने एनटी रामाराव की पार्टी तेलुगु देशम से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। साल 1996 में एक्ट्रेस पहली बार राज्यसभा सांसद बनी थीं। कुछ सालों बाद ही जया ने दक्षिण भारत छोड़कर उत्तर भारत की राजनीति में समाजवादी पार्टी के जरिए कदम रखा। इस पार्टी से वो दो बार सांसद रहीं। हालांकि 2019 में जया बीजेपी में शामिल हो गई थीं।

राजीव गांधी के कहने पर सुनील दत्त ने रखा राजनीति में कदम

सुनील दत्त ने करीबी दोस्त राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में कदम रखा था। वो 5 बार सांसद चुने गए। कांग्रेस सरकार के राज में वो 2004 में मिनिस्टर ऑफ यूथ एंड स्पोर्ट्स रहे थे।

शत्रुघ्न सिन्हा 33 साल से पॉलिटिक्स में हैं

सिन्हा 1991 में बीजेपी से जुड़े थे। पार्टी में उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां दी गईं। राज्यसभा सदस्य बनाया और केन्द्र में मंत्री रहे। पटना साहिब से टिकट दिया और वे लोकसभा चुनाव भी जीते। 2014 में उन्हें केंद्र में मंत्री पद नहीं मिला तो भाजपा से संबंधों में खटास आ गई।

2019 में भाजपा ने उनकी जगह रविशंकर प्रसाद को पटना साहिब से उम्मीदवार बना दिया तो शत्रु ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। वे भाजपा में करीब 28 साल रहे। इसके बाद कांग्रेस में उनका सफर मात्र तीन साल का ही रहा। फिर उन्होंने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस जॉइन कर ली और अब आसनसोल से सांसद हैं। इन सितारों के अलावा प्रकाश राज, परेश रावल, मिथुन चक्रवर्ती, शबाना आजमी भी राजनीति में अच्छी पकड़ बना चुके हैं।



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