Poison in the air of Saharanpur | सांस लेना मुश्किल, 45 की उम्र में बूढ़े हो रहे: सहारनपुर में बैन फैक्ट्रियां टायर जलाकर तेल बना रहीं, 20 साल वालों के फेफड़े खराब – Saharanpur News
यूपी का एक जिला ऐसा भी है, जहां लोग 45 की उम्र में ही बूढ़े दिखने लगे हैं। यह जिला है सहारनपुर। जहां 10 से ज्यादा फैक्ट्रियों में रोज 50 हजार पुराने टायर जलाकर तेल बनाया जा रहा है।
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दरअसल, NCR में ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को बैन कर दिया गया है। जिसके बाद प्रतिबंधित फैक्ट्रियों के संचालक अब पश्चिमी यूपी में शिफ्ट हो रहे हैं।
इन फैक्ट्रियों की लोकेशन के आस-पास रहने वाले 20 हजार की आबादी सबसे प्रभावित बताई जा रही है। प्रदूषित माहौल में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को लेकर हमने वरिष्ठ फिजीशियन डॉ.प्रवीण शर्मा से बात की। वह कहते हैं- OPD में हर 5वां शख्स सांस की बीमारी के लिए आ रहा है। 20-25 साल के लड़कों के फेफड़ों में इन्फेक्शन मिल रहा है, जबकि वे स्मोकिंग तक नहीं करते।
डॉक्टर कहते हैं- कम उम्र के लड़कों में सांस फूलने और स्किन के इन्फेक्शन कॉमन होते जा रहे हैं। कह सकते हैं कि लोग 15 साल पहले यानी 45 साल की उम्र में बूढ़े जैसे दिखने लगे हैं।
आधी रात सहारनपुर में ये फैक्ट्रियां टायर कैसे जला रही हैं? इसका लोगों पर किस तरह असर पड़ रहा है? लोग क्या कहते हैं? डॉक्टर क्या बताते हैं? ये सब जानने के लिए भास्कर टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची। हमने 8 गांव में विजिट की। पढ़िए सिलसिलेवार रिपोर्ट…
सबसे पहले आपको फैक्ट्री दिखाते हैं, जहां आधी रात को टायर जल रहे…
जिन फैक्ट्रियों को सील किया गया, वह रात में चल रहीं
गांव में लोगों से बात करने के बाद देर रात फैक्ट्रियों का हाल देखने पहुंचे। सामने आया कि आधी रात को भी इन फैक्ट्रियों से धुआं उठ रहा था।
दैनिक भास्कर की टीम उन फैक्ट्रियों के पास पहुंची। जो रात के समय चल रही थीं। इनमें कई ऐसी थीं। जो कागजी लिखा-पढ़ी में बंद थीं। जो लोग आस-पास मिले, उन्होंने बताया कि रात में टायर जलाए जा रहे थे। अंधेरे में भी धुआं निकलता साफ दिख रहा था।
क्या है टायर ऑयल बनाने का प्रोसेस वैसे तो टायर ऑयल प्लांट लगाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। लेकिन, NGT के नियमों का उल्लंघन करके इन टायर ऑयल प्लांट को चलाया जा रहा। प्लांट में रिजेक्ट टायर को खरीदकर लाया जाता है।
इन टायरों को कटिंग करते हैं। तार निकालकर अलग करते हैं। टायर को डिस्पोजल मशीन में बॉयल (पकाना) करते हैं। बॉयल करते हुए इन टायरों से तेल निकलता है। तेल को अलग ड्रमों में भरते हैं। टायर के चूरे को अलग करते हैं।
फैक्ट्री के अंदर धड़ल्ले से टायर जलाए जा रहे हैं।
40 रुपए लीटर बिकता है टायर ऑयल (LDO) टायर ऑयल प्लांट से निकलने वाले तेल को टायर ऑयल कहते हैं। ये लोग इस तेल को लाइफ डीजल ऑयल (LDO) के नाम से बेचते हैं। निकली हुई रबड़ को ईंट भट्ठे वाले खरीदते हैं। LDO को रोड प्लांट और बड़ी फैक्ट्री वाले खरीदते हैं। प्लांटों और फैक्ट्रियों में चलने वाले बर्नरों में इस तेल का यूज होता है। ये तेल काफी सस्ता यानी 40 से 42 रुपए लीटर पड़ता है।
रेडियल टायर से निकलता है ज्यादा तेल टायर ऑयल प्लांट में सबसे ज्यादा तेल रेडियल टायर से निकलता है। अगर एवरेज मानें, तो एक ट्रक के टायर से करीब 9 लीटर तेल निकलता है।
वहीं, सादे टायर से करीब दो लीटर तेल निकलता है। इस टायर ऑयल का प्रयोग पुराने इंजन चलाने के लिए भी किया जाता है। कुछ माफिया तो इस टायर तेल से डीजल भी बना रहे हैं।
ये फैक्ट्री कागजों पर सील है, लेकिन यहां रात में टायर जलाए जा रहे हैं।
LHF और FO फर्निश ऑयल दो प्रोडक्ट टायर ऑयल प्लांट पर काम कर चुके एक युवक ने बताया- दो प्रकार के ऑयल होते हैं। एक LHF और FO फर्निश ऑयल। पहले एफओ फर्निश ऑयल चलता था। लेकिन, वो अब बंद हो गया है। अब LHF ऑयल चलता है। बड़ी-बड़ी ऑयल कंपनियां भी अब LHF ऑयल चला रही हैं।
हरियाणा, राजस्थान, यूपी, दिल्ली में LHF ऑयल चलता है। उत्तराखंड में अब भी फर्निश ऑयल चल रहा है। लेकिन, नियम यह है कि कोई भी फैक्ट्री हो, LHF ऑयल ही इस्तेमाल करेगी।
फर्निश ऑयल पूरी तरह से बंद हैं। वहीं, लाइफ डीजल ऑयल (LDO) जो टायरों से निकाला जाता है। इस पर पूरी तरह से बैन है। नियम के मुताबिक, कोई भी फैक्ट्री इसे इस्तेमाल नहीं कर सकती। लेकिन, बाजार में लाइफ डीजल ऑयल (LDO) के नाम से ये तेल बेचा जाता है।
फैक्ट्री के अंदर आग की लपटें दिख रही हैं, जिनमें टायर जलाया जा रहा है।
इन फैक्ट्रियों में साल में 500 करोड़ का कारोबार सहारनपुर में करीब 10 से ज्यादा टायर ऑयल प्लांट अवैध रूप से लगे हैं। इन प्लांटों की कमाई की बात करें, तो इनका साल का टर्नओवर 500 करोड़ से भी ज्यादा है। ऑयल की क्षमता उनकी मशीनरी पर निर्भर है। अगर एक फैक्ट्री से टायर ऑयल निकालने की बात करें, तो 24 घंटे में करीब 5000 लीटर टायर ऑयल निकाला जाता है।
हर तरफ काला धुआं निकलता हुआ दिख रहा है।
फैक्ट्रियों के आस-पास बसे गांव के हालात समझिए… भास्कर टीम सहारनपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर संकलापुरी, खुबनपुर, शाहपुर कदीम, सरकड़ी खुमार, कोलकी और मनसापुर गांव तक पहुंची। यहां, फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं के बारे में पड़ताल की। तो ग्रामीण इकट्ठा हो गए। सभी अपने-अपने दर्द बताने लगे।
सलीम अहमद ने कहा- मेरी पोती को सांस लेने में दिक्कत हुई थी।
सलीम बोले- 5 महीने में दो मौतें हो गईं सलीम अहमद ने बताया- उनकी 5 साल की पोती की मौत 15 दिन पहले हुई है। उसे सांस लेने में दिक्कत हुई थी। एम्स में वैंटिलेटर पर रही। इसके बाद भी बच नहीं पाई। मुझे भी सांस लेने में अक्सर दिक्कत होती है।
जलील ने कहा- मेरे घर के दो सदस्यों को सांस लेने में दिक्कत हुई, फिर उनकी मौत हो गई।
जलील बोले- पत्नी की मौत हो गई जलील ने बताया- मेरी पत्नी आशिया की 4 महीने पहले मौत हो गई। उसे सांस लेने में परेशानी हुई थी। उनकी मां फूलबानो की भी 12 दिन पहले मौत हो गई। दोनों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था। 5 माह में घर में 2 मौत हो गईं। इसके पीछे फैक्ट्री से निकलने वाला धुंआ ही वजह है।
बूंदू हसन ने कहा- फसलें बर्बाद हो रही हैं, उन पर भी प्रदूषण का असर दिखता है।
बूंदू हसन बोले-धुएं ने सब तबाह कर दिया बूंदू हसन ने बताया- मेरी पत्नी मुमताह की दो महीने पहले मौत हो गई थी। उनको कैंसर हो गया था। मैं खुद चारपाई पर लेटे हुए आखिरी सांसें गिन रहा हूं। फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं से लोगों की जान जा रही है। फसल बर्बाद हो रही है। पशु खेतों से चारा नहीं खा रहे हैं। हम लोग बाहर से खरीदकर ला रहे हैं।
इकराम ने कहा- फैक्ट्रियां अवैध हैं, फिर कैसे चल रही हैं।
इकराम बोले- प्रशासन सुध नहीं लेता इकराम ने बताया- प्रशासन के अफसर इन फैक्ट्रियों की सुध नहीं ले रहे। आम आदमी मर रहा है, तो मरने दो। कई बार शिकायत भी कर चुके हैं। लोग धरने पर बैठ गए थे। लेकिन अधिकारी न तो कोई कार्रवाई करते हैं और न ही गांव में आकर देखते हैं। यहां लोग बीमार हो रहे हैं।
चंद्रभान ने कहा- मुझे सांस की बीमारी हो गई।
चंद्रभान बोले- सांस लेने में दिक्कत होती चंद्रभान ने बताया- टायरों से निकलने वाले धुएं से सांस लेने में दिक्कत आ रही है। करीब दो साल से सांस की परेशानी हो गई है। सांस ली नहीं जाती है। टायरों का काला धुआं फेफड़ों को खराब कर रहा है।
गुफरान ने कहा- लोग परेशान है, मगर सुनने वाला कोई नहीं।
गुफरान बोले- 12 साल से चल रही फैक्ट्री गुफरान ने कहा- गांव की आबादी के आसपास 12 साल से फैक्ट्रियां लगी हैं। फैक्ट्री में टायर जलाए जाते हैं, जिससे गांव में धुआं हो जाता है। सांस, आंख और फेफड़ों में दिक्कत होती है। 5 साल से फैक्ट्रियों के धुएं ने हार्ट का बीमार बना दिया है। कुछ लोगों को कैंसर, टीबी और दमा हो गया है। कोई ध्यान नहीं दे रहा।
प्रधान संगठन के अध्यक्ष संजय वालिया बोले- हमने विरोध दर्ज कराया, मगर कुछ नहीं हुआ।
संजय वालिया बोले- NGT सिर्फ किसानों पर एक्शन लेती है प्रधान संगठन के अध्यक्ष संजय वालिया ने बताया- NGT एक ऐसी संस्था है, जो प्रदूषण रोकने के लिए काम करती है। किसान पराली जलाते हैं, तो उसका धुआं सैटेलाइट में कैच कर लिया जाता है। लेकिन 12 सालों से गांव में ये फैक्ट्रियां लगी हुई हैं। उनसे निकलने वाला धुआं सैटेलाइट में कैद नहीं हो रहा। किसानों पर FIR हो जाती है। 25 हजार जुर्माना भी लिया जाता है। किसानों को दंड मिलता है।
बंद कमरों में भी ये धुआं बर्दाश्त नहीं होता। गांव के लोग कैंसर, टीबी, दमा, हार्ट और अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। कई लोगों की गंभीर बीमारियों से मौत हो गई। एक 5 साल की बच्ची को भी ये धुआं निगल गया।
फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं को लेकर मंडलायुक्त और डीएम को ज्ञापन दिया। धरना भी दिया। लेकिन, आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। लगता है कि NGT का जो ड्रामा है, वो किसानों के ऊपर ही जोर आजमाइश का है।
गांव संकलापुरी के प्रधान पति जावेद ने कहा- NCR में फैक्ट्रियां बंद होने के बाद यहां कई यूनिट खुल गई हैं।
प्रधान पति बोले- अधिकारियों से सेटिंग कर चल रही फैक्ट्री गांव संकलापुरी के प्रधान पति जावेद ने बताया- गांव के पास करीब सात से ज्यादा टायर फैक्ट्रियां लगी हैं। पहले एक फैक्ट्री थी। लेकिन, NCR में प्रदूषण के कारण ये फैक्ट्रियां बंद कर दी गईं। सहारनपुर में धीरे-धीरे फैक्ट्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
ये फैक्ट्रियां 12 साल से लगी हैं। पहले तो हम सोच रहे थे कि ये फैक्ट्रियां और उनसे निकलने वाला धुआं नुकसान नहीं देता है। लेकिन, अब पता चल रहा है। अब इन फैक्ट्री मालिकों की जड़ें जम चुकी हैं।
अधिकारियों से सेटिंग है। इसलिए कुछ नहीं होता है। जहरीली गैस और उसकी बदबू से गांव से भाग जाने का मन करता है। रात को घर में सही से सो भी नहीं सकते। खेतों की फसल अलग बर्बाद हो रही है।
डॉक्टर से समझिए, कैसे कम उम्र में बीमार पड़ रहे लोग सहारनपुर में बढ़ते प्रदूषण पर दैनिक भास्कर ने वरिष्ठ फिजिशियन डॉ.प्रवीण शर्मा से बात की। उन्होंने कहा- प्रदूषित माहौल में ज्यादा देर रहने वाले लोगों को स्किन एलर्जी जल्दी होती है। चेहरे पर जल्दी झुर्रियां आ जाती है। स्किन कैंसर तक हो जाता है, जोकि जानलेवा है। पढ़िए पूरी बातचीत…
सवाल : प्रदूषित वायु में ज्यादा रहने से बच्चे, जवान और बुजुर्ग पर कितना असर पड़ता है? जवाब : दिल्ली से लेकर सहारनपुर तक AQI डेंजर जोन में दिखाता है, मतलब आप सांस भी नहीं ले सकते हैं। इसका असर डॉक्टर्स की OPD में आने वाले मरीजों में दिखता है। मतलब हमारे यहां आने वाले मरीजों में सबसे ज्यादा सांस के होते हैं। 25 से 30 साल के लड़कों की सांस फूल रही है। बाल जल्दी सफेद हो जा रहे हैं। सवाल : क्या ये प्रदूषण जानलेवा भी हो रहा है? जवाब : अलार्मिंग सिचुएशन ये है कि लोगों में कैंसर की बीमारी बढ़ी है, जिसका बड़ा फैक्टर प्रदूषण माना जा रहा है। पहले लोग दूर-दराज में किसी कैंसर पेशेंट के बारे में सुनते थे। अब यह आपके आस-पास रहने वाले परिवारों में कैंसर की बीमारी बहुत कॉमन होती जा रही है। सवाल : 5 से लेकर 60 साल तक के ऐज ग्रुप के लोगों पर कैसा असर दिखता है? जवाब : OPD में आने वाले केस के रिव्यू से कह सकता हूं कि अब 5 से 10 साल के बच्चों में अस्थमा की बीमारी मिल रही है। 20 साल तक के लड़कों में सांस फूलने के लक्षण सामान्य हो चुके हैं। स्किन एलर्जी, जल्दी झुर्रियां आना भी दिखने लगा है। स्किन कैंसर भी बढ़ता जा रहा है। सवाल : इन फैक्ट्रियों के आस-पास क्या ज्यादा प्रदूषण की वजह से जोखिम बढ़ गया है? जवाब : प्रदूषण किसी खास एरिया पर इफेक्ट्स नहीं देता है, वह तो पूरे शहर को अपने कब्जे में लेता है। ये कह सकते हैं कि फैक्ट्रियों के आस-पास असर ज्यादा होता है।
सहारनपुर में फैक्ट्रियों के आस-पास पॉल्यूशन लेवल 390 रहता है, जोकि दिल्ली-एनसीआर से ज्यादा है…
सहारनपुर में AQI 400, मगर GRAP नहीं लगता AQI 400 के पार पहुंचने पर GRAP लगाया जाता है। लेकिन, सहारनपुर में फैक्ट्री आसपास वालों जिलों में अक्सर AQI 400 पार रहता हैं। लेकिन, इसके बाद भी कोई नियम यहां पर लागू नहीं होता है। जबकि दिल्ली-एनसीआर में ऐसा होने पर GRAP लागू कर दिया जाता है।
हवा के प्रदूषण स्तर की जांच करने के लिए इसे 4 कैटेगरी में बांटा गया है। हर स्तर के लिए पैमाने और उपाय तय हैं। इसे ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) कहते हैं। इसकी 4 कैटेगरी के तहत सरकार पाबंदियां लगाती है और प्रदूषण कम करने के उपाय जारी करती है।
ग्रेप के स्टेज
स्टेज | स्थिति | AQI |
स्टेज I | ‘खराब’ | 201-300 |
स्टेज II | ‘बहुत खराब’ | 301-400 |
स्टेज III | ‘गंभीर’ | 401-450 |
स्टेज IV | ‘गंभीर प्लस’ | >450 |
पढ़िए पर्यावरण एक्सपर्ट क्या कहते हैं…
फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं जहर जैसा
पर्यावरण एक्सपर्ट डॉ.एसके उपाध्याय फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं को जहर बता रहे हैं।
पर्यावरणविद डॉ.एसके उपाध्याय ने बताया- जब किसानों का पराली जलाना अपराध माना जा रहा है। टायरों को जलाना, तो उससे भी खतरनाक है। ये पूरी तरह से बैन है। टायर जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, वाष्प-शील कार्बनिक यौगिक (VOCs), पार्टिकुलेट मैटर (PM), ब्यूटाडीन, स्टाइरीन, टॉक्सिक रसायन, बेंजीन जैसी जहरीली गैस निकलती है। ये हैवी होते हैं, तो ये ज्यादा ऊपर नहीं जाते हैं। अगर आदमी उस हवा में सांस लेगा तो उसे फेफड़ों की बीमारी के साथ-साथ कैंसर, टीबी, दमा और आंख भी खराब होगी। फेफड़ों का कैंसर तो निश्चित होगा। खेती को भी नुकसान होगा। पशु चारा नहीं खाएंगे।
इन गैसों से होने वाले नुकसान
- कार्बन मोनोऑक्साइड : इस गैस से दिल, दिमाग, तंत्रिका संबंधी क्षति, कोमा या मौत भी हो सकती है। गर्भवती महिलाओं के अजन्मे बच्चों को भी नुकसान पहुंच सकता है। इससे होने वाले लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं।
- सल्फर डाइऑक्साइड : इस गैस से सांस लेने में तकलीफ और सांस संबंधी बीमारी होती है। आंखों, त्वचा, नाक, गले, और फेफड़ों की श्लेष्मा झिल्ली परेशान होती है। सांस की नली में सूजन और जलन हो सकती है। इससे अस्थमा के हमले बढ़ सकते हैं। दिल और फेफड़ों की बीमारियां हो जाती है।
- नाइट्रोजन ऑक्साइड : सांस लेने में परेशानी होती। कम सांद्रता में सांस लेने पर हल्की खांसी और सांस फूलने जैसी समस्याएं होती हैं। ज्यादा सांद्रता में सांस लेने से गले और ऊपरी श्वसन नली में जलन, ऐंठन, और सूजन हो जाती है। फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा हो जाता है।
- वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) : आंखों, नाक, और गले में जलन, सिरदर्द, समन्वय की कमी, मतली, यकृत, गुर्दे या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान, सांस लेने में कठिनाई, त्वचा पर एलर्जिक प्रतिक्रिया और थकान होती है।
- ब्यूटाडाइन गैस : आंख, नाक, गले और त्वचा में जलन होती है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) अवसाद होता है। आंखों से धुंधला दिखाई देता है। मतली, थकान, सिरदर्द, चक्कर आना, रक्तचाप और नब्ज कम चलती है और बेहोश तक होने की संभावना रहती है।
- स्टाइरीन गैस : इसे सूंघने से आंखों से देखने में दिक्कत होती। रंग पहचानने में समस्या होती है। बहुत ज्यादा थकान महसूस होती है। हमेशा नशे जैसा महसूस हो सकता है। ध्यान लगाकर काम नहीं कर पाना। सुनाई पड़ने में भी समस्या हो सकती है।
- इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) के मुताबिक, स्टाइरीन एक संभावित कैंसरकारी तत्व है। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के मुताबिक, स्टाइरीन के संपर्क में आने से ल्यूकेमिया और लिम्फोमा का खतरा बढ़ सकता है।
- टॉक्सिक रसायन : पाचन क्रिया पर असर डालता है। अपच, पेट खराब होना, कब्ज, एसिडिटी, ब्लोटिंग जैसी समस्याएं हो जाती है। त्वचा जलने लगती है। फेफड़ों का कैंसर हो जाता है। प्रजनन क्षमता में कमी आती है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए खतरा है। कैंसर, मस्तिष्क क्षति और प्रजनन क्षमता में कमी आ जाती है।
- बेंजीन : इससे कैंसर, विशेषकर ल्यूकेमिया और रक्त कोशिकाओं के अन्य कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
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